2025 में गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व कब है?
Guru Gobind Singh Gurpurab 2025: त्याग, वीरता और बलिदान के प्रतीक सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरू श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व को भारत समेत दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल 2025 में उनकी 358वी जयंती सोमवार, 06 जनवरी को मनाई जा रही है, और इसी साल 26 दिसम्बर 2025 को उनका 359वां प्रकाश उत्सव भी मनाया जाएगा। हालंकि गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ माना जाता है। उनके बर्थडे को सिख सहित दूसरे समुदायों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
धर्म और मानवता की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने परिवार समेत स्वयं का भी बलिदान दे दिया था इसलिए उन्हें “सर्वस्वदानी” भी कहा जाता है। इसके अलावा उन्हें बाजावाले, कलगीधर और दशमेश आदि नामों से ही जाना जाता है। पिछली साल 2024 में गुरु गोविंद सिंह जी के 357वें प्रकाश उत्सव को बुधवार, 17 जनवरी 2024 को मनाया गया था।
गुरु गोविंद सिंह जयंती कब और कैसे मनाई जाती है?
खालसा पंथ के संस्थापक और सिक्खों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती प्रत्येक वर्ष नानकशाही कैलेंडर के अनुसार पोह की 23 तारीख को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार गुरुजी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था, इसलिए कुछ लोग इस दिन भी उनके जन्मदिन (बर्थडे) को मनाते है।
तारीख | जन्म वर्षगांठ | तिथि |
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सोमवार, 06 जनवरी 2025 | 358वीं | 05 जनवरी रात 08:15 बजे से 06 जनवरी की शाम 06:23 बजे तक |
शनिवार, 27 दिसंबर 2025 | 359वीं | 26 दिसंबर, दोपहर 01:43 बजे से 27 दिसंबर, दोपहर 01:09 बजे तक |
गुरूजी के बर्थडे (Gurpurab) को सिख समुदाय में काफी धूमधाम से मनाया जाता है, इस मौके पर गुरू ग्रन्थ साहिब का पाठ, अरदास और गुरुद्वारों में मत्था टेका जाता है। इसके आलावा गुरूजी के प्रकाश उत्सव पर कीर्तन और सुबह-सवेरे प्रभात फेरीयों का आयोजन किया जाता है।
साथ ही प्रकाश पर्व के दिन लंगर आदि भी लगाएं जाते हैं और खालसा पंथ की झांकियां निकाली जाती हैं, तथा गुरुद्वारों में सेवा और घरों में कीर्तन भी करवाए जाते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर उनके अनमोल विचार (Guru Gobind Singh Birthday Quotes)
इंसानों से प्रेम करना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है।
अज्ञानी व्यक्ति एक अंधे के समान होता है, जिसे मूल्यवान चीजों की कदर नहीं होती।
असहाय लोगों पर अपनी तलवार या शाक्ति का प्रदर्शन कभी नहीं करना चाहिए। वरना विधाता तुम्हारा खून स्वयं बहाएगा।
जब बाकी सभी तरीके विफल हो जाएं, तो हाथ में तलवार उठाना सही है।
ईश्वर ने मनुष्य को जन्म ही इसलिए दिया है, ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें।
अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान भी खो देंगे।
भगवान के नाम के अलावा मनुष्य का कोई मित्र नहीं है और भगवान के सेवक इसी का चिंतन करते हैं।
बिना गुरु के किसी को भगवान का नाम नहीं मिला है।
वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह
सवा लाख से एक लड़ाऊँ, चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊँ तबे गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ।
गुरु गोबिंद सिंह जी अपने मानवीय जन्म को ईश्वर द्वारा अच्छे कर्मों को करने और बुरे कर्मों को दूर करने के लिए बताया है। वे ऐसे लोगों को खासा पसंद किया करते थे जो केवल सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले हैं।
कब हुआ था गोबिंद सिंह का जन्म?
दशमेश गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ माना जाता है, परंतु हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार आपका जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1723 विक्रमी संवत में हुआ, वहीं सिख कैलेंडर नानकशाही के अनुसार पोह सुदी 7वीं, 23 पोह की तारीख गुरुजी की जन्म तिथि है। और इसी तिथि को प्रत्येक वर्ष गुरु गोविंद सिंह जी की का प्रकाश पर्व (गुरपूरब) मनाया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी (Guru Gobind Singh Biography)
गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें और आखिरी गुरु होने के साथ ही एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता भी थे। उन्होंने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को भी पूरा किया।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1666 को पटना (बिहार) में सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के यहां हुआ, उन्हें बचपन में गोबिंद राय के नाम से जाना जाता था। उनके जन्म स्थान को अब ‘तख्त श्री पटना साहिब‘ नाम से जाना जाता है।
वर्ष 1670 में उनका परिवार पंजाब वापस आ गया और उनकी आरंभिक शिक्षा की शुरुआत वर्ष 1672 में हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी (अब आनंदपुर साहिब) नामक स्थान से हुई। यहां इन्होंने संस्कृत के साथ ही फारसी और अरबी की शिक्षा भी ग्रहण की तथा शस्त्रों का ज्ञान और सैनिक कौशल, तीरंदाजी एवं मार्शल आर्ट्स भी सीखा।
9 वर्ष की आयु में बने सिक्खों के 10वें गुरू?
जब गोबिंद सिंह जी 9 साल के थे तब इस्लाम ना स्वीकारने पर औरंगजेब ने उनके पिता और सिक्खों के नौवें गुरु श्री गुरू तेग बहादुर जी का सिर कटवा दिया था। जिसके बाद 11 नवम्बर 1675 को मात्र 9 वर्ष की आयु में वे सिक्खों के दसवें गुरू बने। गुरु गोविंद सिंह जी के समय दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब का शासन था परंतु 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उन्होंने ‘बहादुर शाह‘ को सम्राट बनाने में मदद की।
गुरु गोबिंद सिंह जी की कितनी पत्नी और बच्चे थे?
गुरू गोविंद सिंह जी की तीन पत्नियां माता जीतो, माता सुंदरी और माता साहिब देवान थी तथा जुझार सिंह, फ़तेह सिंह, जोरावर सिंह और अजित सिंह उनके चार पुत्र थे। गुरुजी ने अपने जीवन काल में तीन शादियां की उनका पहला विवाह 10 साल की उम्र में 21 जून 1677 को माता जीतो के साथ सम्पन्न हुआ, जिनसे इन्हें 3 पुत्र प्राप्त हुए। इन तीनों पुत्रों के नाम साहिबजादें जुझार सिंह, साहिबजादे जोरावर सिंह और साहिबजादे फतेह सिंह है।
दूसरा विवाह 4 अप्रैल 1684 को 17 वर्ष की आयु में माता सुंदरी से हुआ, माता सुंदरी से इन्हें 1 पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम अजीत सिंह है, जिसके बाद उनका तीसरा और अंतिम विवाह 15 अप्रैल 1700 को अपनी 33 वर्ष की आयु में माता साहिब देवन से हुआ, परन्तु इनसे कोई संतान प्राप्त नहीं हुई।
खालसा पंथ की स्थापना कब और किसने की?
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना 1699 ई. में बैसाखी के दिन गरीबों पर अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने एवं मानवता की रक्षा के लिए तत्पर रहने वाले योद्धाओं की एक मजबूत सेना बनाने के मकसद से की। ख़ालसा का मतलब है मन, कर्म और वचन से शुद्ध।
गुरुजी ने खालसा सिखों को ‘क’ शब्द से शुरू होने वाले पांच चीजों (जिन्हें ककार कहा जाता है) को हमेशा धारण करने को अनिवार्य बताया है जो है:- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा तथा इनके बिना खालसा अधूरा माना जाता है।
पंज प्यारे और पहले ख़ालसा की कहानी
आनंदपुर में सिखों की एक सभा के दौरान गुरू गोविंद सिंह जी ने स्वयंसेवकों से पूछा गुरू के लिए अपने सिर का बलिदान कौन देना चाहता है? इस पर एक स्वयंसेवक सामने आया तो गुरु जी उसे पास ही के एक तंबू में ले गए और कुछ देर बाद खून से लथपथ तलवार के साथ बाहर आए। उन्होंने फिर वही प्रश्न दोहराया और एक और स्वयंसेवक स्वेछा से उनके साथ तंबू में चला गया और गुरू जी खून से सनी तलवार के साथ बाहर आए।
इसी तरह वे कुल 5 स्वयंसेवक को बलिदान के लिए तंबू में ले गए परन्तु अंत में गुरुजी उन सभी स्वयंसेवकों को एक साथ जीवित बाहर लेकर आए और उन्होंने इन्हें ‘पंज प्यारे‘ कहा और इसे ‘पहले खालसा‘ का नाम दिया। इसके बाद गुरू जी ने इन पांचों स्वयंसेवकों को अमृत दिया एवं खुद भी अमृत ग्रहण किया। उन्होंने अपनी सेना को सिंह (शेर) तथा खुद को छठा खालसा घोषित किया और अपना नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह कर दिया।
इसके साथ ही उन्होंने खालसा वाणी स्थापित की और “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह” का नारा दिया।
गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लड़ें गए ऐतिहासिक युद्ध
गुरू गोबिंद सिंह जी ने मुगलों या उनके सहयोगियों के साथ 14 युद्ध लड़े। गुरुजी द्वारा किए गए महत्वपूर्ण युद्ध में से 1704 ईस्वी में हुआ चमकौर का युद्ध (Battle of Chamkaur) काफी खास माना जाता है। बताया जाता है कि यह युद्ध गुरु जी ने मुगलों की 10 लाख सेना से अपने मात्र 42 सिख लड़ाकू सैनिकों के साथ लड़ा, इस भयंकर युद्ध में उनके दो बेटे जुझार सिंह और अजीत सिंह जी शहीद हो गए।
चमकौर के इस युद्ध के बाद गुरूजी ने कहा:
चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ।”
“सवा लाख से एक लडाऊं तबै गोबिंद सिंह नाम कहाऊं!!
इसी बीच उनकी माता (गुजरी) का भी निधन हो गया और 26 दिसंबर 1704 को मुगलों ने इस्लाम न कबूलने पर 5 और 8 वर्ष की आयु के उनके दो अन्य बेटों (साहिबजादों) जोरावर सिंह व फतेह सिंहजी को दीवार में चुनवा दिया। छोटे साहिबजादों का बलिदान दिवस अब वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
8 मई 1705 में मुक्तसर में मुगलों के खिलाफ़ हुए भयानक युद्ध में गुरुजी की विजय हुई। इसके अलावा उन्होंने:
- 1688 में भंगानी का युद्ध,
- 1691 में नंदौर का युद्ध,
- 1696 में गुलेर का युद्ध,
- 1700 आनंदपुर का प्रथम युद्ध,
- 1702 में निर्मोहगढ़ और बसोली का युद्ध,
- 1704 में चमकौर युद्ध, आनंदपुर का दूसरा युद्ध और सरसा का युद्ध तथा
- 1705 में मुक्तसर का युद्ध लड़ा।
यह उनके कुछ महत्वपूर्ण युद्ध है जिनमें उन्होंने अपनी बहादुर सेना के सैनिकों एवं अपने परिवारजनों को भी खो दिया।
गुरु नानक देव जी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
अक्टूबर 1707 में जब गुरुजी दक्षिण की ओर गए तो औरंगजेब की मृत्यु की खबर मिली। औरंगजेब की मौत के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने बहादुरशाह को बादशाह की गद्दी पर विराजमान करने में काफी सहायता की। दोनों के आपसी संबंधों को देखते हुए नवाब वाजिद खां घबरा गया।
जिसके फलस्वरूप उसने सिखों के दसवें गुरु के पीछे अपने पठान छोड़ दिए, अंततः 7 अक्टूबर 1708 को इन पठानों ने धोखे से वार कर उनकी हत्या कर दी और वे महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए।
गुरु गोविंद सिंह जी के बाद सिखों का नेतृत्व किसने किया?
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु की परम्परा समाप्त कर सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया और इसे ही सिखों को अपना गुरु मानने को कहा और खुद भी मत्था टेका, वे सिक्खों के 10वें और अंतिम गुरू थे।
हालंकि गुरु गोबिंद सिंह जी के बाद सिखों का नेतृत्व उनके विश्वसनीय शिष्य ‘बंदा बहादुर‘ ने किया। बंदा बहादुर का जन्म 27 अक्टूबर 1670 को ‘लक्ष्मण देव‘ के रूप में हुआ, वे एक सिख सैन्य कमांडर थे और उन्होंने गुरू गोविन्द सिंह जी के नेतृत्व में मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़ें तथा एक सिख राज्य की स्थापना भी की।
गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं कौन सी है?
गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने जीवन में कई रचनाएं एवं कविताएं लिखी उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में ‘अकाल उस्तत‘, ‘शास्त्र नाम माला‘, ‘खालसा महिमा‘, ‘चंडी दी वार‘, ‘ज़फ़रनामा‘ (दसम ग्रंथ का एक भाग), ‘जाप’ साहिब, जैसी रचनाएं शामिल हैं।
बिचित्र नाटक उनकी आत्मकथा मानी जाती है यह दसम ग्रंथ का एक भाग है तथा दसम ग्रंथ गुरु गोविंद सिंह की कृतियों का संकलन है।
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